भटक रहे हो कहाँ तुम ? अब आ जाओ मैं यहाँ हूँ। भटक रहे हो कहाँ तुम ? अब आ जाओ मैं यहाँ हूँ।
शिव अर्पण शिव अर्पण
योग भोग छोड़कर ही तभी मुक्ति पाओगे ! जीवन सफल बनाओगे...! योग भोग छोड़कर ही तभी मुक्ति पाओगे ! जीवन सफल बनाओगे...!
स्पंदन श्वाँसों का तुम ही मेरे जीवन की प्रत्याशा हो। रसिया छलिया लिलहारी सखा तुम ग्वालिन गोप की आशा... स्पंदन श्वाँसों का तुम ही मेरे जीवन की प्रत्याशा हो। रसिया छलिया लिलहारी सखा तु...
अंतर्मन के भीतर चल रहे अनेक ख्यालों का एक कविता के रूप में वर्णन... अंतर्मन के भीतर चल रहे अनेक ख्यालों का एक कविता के रूप में वर्णन...
तुम पर गीत लिखूँगा सुंदर। पहले ढूँढ तो लूँ मैं विषधर ।। हम तो झरना दरिया तक ही, बनूँ नहिं खारा मी... तुम पर गीत लिखूँगा सुंदर। पहले ढूँढ तो लूँ मैं विषधर ।। हम तो झरना दरिया तक ही...